भगवान जगन्नाथ कि मूर्ति अधूरी ही क्यों बनाई जाती है और पुरानी मूर्ति का आखिर क्या किया जाता है?

श्री कृष्ण के स्वरूप में विराजित भगवान जगन्नाथ।

उड़ीसा के पूरी में भगवान जगन्नाथ के यह विश्व प्रसिद्द मंदिर भगवन विष्णु के बैकुंठ धाम के बराबर माना जाता है। जगत का कल्याण करने वाले भगवान जगन्नाथ का यह मंदिर अपने आप में अनूठा है और अनेक ऐसे रहस्यों से भरा है जिनको आज तक वैज्ञानिक भी नहीं सुलझा सके हैं। मंदिर के ऐसे ही कुछ अनूठे रहस्यों को आज हम जानेंगे जो भगवान जगन्नाथ की महिमा का गुणगान करते हैं।

इस मंदिर की एक विशेषता यह भी है, कि मंदिर के ऊपर एक सुदर्शन चक्र लगा है, जिसे कहीं से भी देखने पर वो हमेशा सीधा ही दिखाई देता है एवं मंदिर का झंडा हमेशा हवा कि विपरीत दिशा में ही लहराता है और ऐसा क्यों होता है यह किसी को नहीं मालूम |

भगवान जगन्नाथ को भोग लगाने के लिए प्रसाद को 7 बर्तनों में पकाया जाता है और आश्चर्य की बात है कि सबसे ऊपर वाले बर्तन का भोजन सबसे पहले पकता है जबकि आमतौर पर भोजन नीचे के बर्तन के सबसे पहले पकना चाहिए।

ऐसे ही अनेक तथ्य ही जो भगवन जगन्नाथ की महिमा का बखान करते हैं और इस घोर कलियुग में भगवन विष्णु की उपस्थिति का आभास कराते हैं।

ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, और बहन सुभद्रा की लकड़ी की मूर्तियां हैं। हर 12 साल में इन मूर्तियों को बदल दिया जाता है। पुरानी मूर्तियों को कोइली बैकुंठ मंदिर में एक खास जगह पर ले जाया जाता है और वहां इन्हें विसर्जित कर दिया जाता है। इसके बाद नई मूर्तियों को जगन्नाथ मंदिर के गर्भगृह में स्थापित किया जाता है।

कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ की मूर्ति अधूरी है और ऐसा इसलिए क्योंकि राजा ने भगवान विश्वकर्मा की शर्त को तोड़ दिया था। जिसके बाद भगवान विश्वकर्मा ने मूर्तियों का काम अधूरा छोड़ दिया था।

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