और उस स्त्री ने पड़ोसियों की बातों में आकर उस भभूत को फेक दिया| लेकिन कुछ सालों बाद जब उस स्त्री को भभूत देने वाले योगी ने बच्चे के बारे में पूछा तो स्त्री ने कहा कि वो भभूत तो मैंने फेंक दी थी|
साधु ने कहा जगह बाताओ, कहा फेंकी थी| साधू को जगह दिखाई गई, वहाँ बच्चा खेल रहा था| साधू उस बच्चे को अपने साथ ले गए और वो बालक बड़ा होकर भगवान गोरखनाथ के नाम से प्रसिद्द हुआ और जी साधू उस बच्चे की लेकर गए थे वे उस बालक के गुरु, मत्स्येन्द्र नाथ थे|
कहा जाता है कि गुरु गोरखनाथ, भगवन शिव के ही अंश है और हठ योग के प्रवर्तक है| भारतीय दर्शन के सबसे बड़े आलोचक और इस सदी के सबसे बड़े दार्शनिक, आचार्य रजनीश यानि ओशो भी गोरखनाथ पर कई बार अपने प्रवचन दे चुके है|
गुरु गोरखनाथ ने ही नाथ योग की परंपरा शुरू की थी और आज हम जितने भी आसन, प्राणायाम, षट्कर्म, मुद्रा, नादानुसंधान या कुण्डलिनी आदि योग साधनाओं की बात करते हैं, सब इन्हीं की देन है।