हम सभी गोमाता को यदि अपने ह्रदय से पूजते हैं तो उसे बचाने में भी हमें ही पहल करनी ही चाहिए।
गोहत्या तभी बढ़ रही है जब हममें से ही कोई गाय के दूध न देने पर उसको बोझ मान बाजार में बेचने निकल जाता हैं।
क्या आपने कभी यह सोचा है कि जिस अपनी प्यारी गाय को हम बेच रहे हैं, उसका खरीददार कौन होगा?
निश्चित ही कोई कसाई ही होगा।
यदि केवल चार या पांच गोभक्त एक-एक गाय को पालने का व्रत ले लें तो घर-घर में गाय होगी।
गोहत्या स्वयं बन्द हो जायेगी।
हमारे ऋषि-मुनियों को भी करोड़ों रूपये सम्मेलनों में करने के विपरीत केवल साधारण रूप से सत्संगों में अपने भक्तों को इस ओर प्रेरित करना चाहिए।
गाय को यदि हम वास्तव में गोमाता मानते हैं तो उसकी रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य हो जाता है।
वैसे भी गाय की तो इतनी महिमा बताई गई है कि जिस घर में गाय का वास हो, उस घर से दुखः दरिद्रता स्वयं चली जाती है। यही नहीं, ऐसा भी कहा जाता है कि –
गाय खड़ी जिस द्वारे, समझो उस घर कन्हैया पधारे।