सरकार ने इस साल भी उचित और मेहनती व्यक्तियों को ज्यादा पद्म पुरस्कार देकर नए कीर्तिमान रचे हैं। इस बात के लिए मोदी सरकार बहुत-बहुत धन्यवाद की पात्र है।
पर बात कहीं कुछ खटकती भी है। क्योंकि यह सरकार हिंदुत्व के मुद्दे पर सत्ता में आई है पर ज्यादातर हिंदू धर्म से जुड़े हुए काम अभी भी पेंडिंग ही हैं।
देश में गाय अभी भी कट रही है, गौ-रक्षकों को प्रधानमंत्री द्वारा वोट पाने के लिए और “लिबरल सर्टिफिकेट” पाने के लिए गुंडा घोषित किया गया था, संत समाज अभी भी बदनामी के चक्कर में फंसा हुआ है, मंदिरों को सरकार द्वारा अभी भी अधिग्रहित किया ही जा रहा है, मंदिरों की संपत्ति को बेचा जा रहा है, हिंदुओं का जबरन या लालच देकर धर्म परिवर्तन किया जा रहा है और ज्यादातर मामलों में सरकार मुँह में दही जमा के बैठी है।
पर हिंदू भी अब धीरे-धीरे जाग रहा है और जगह-जगह हिंदू धर्म की रक्षा करने वाले अपना स्थान समाज में बना रहे हैं। सवाल अब यही है कि देश में अभी भी गौरक्षा को मान्यता सरकार द्वारा नहीं दी गई है जिसके कारण गायों पर संकट दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है।
गौ रक्षा करने वाले गौभक्त अपनी जान पर खेलकर गायों की रक्षा कर रहे हैं। गौरक्षा करने के एवज में कईयों को अपनी जान गंवानी पड़ रही है और ज्यादातर मामलों में ये तथाकथित राष्ट्रवादी और हिंदुत्ववादी सरकार भी उनका साथ नहीं देती और उल्टा उन पर ही केस थोप देती है।
भारत के संयुक्त परिवार के सिस्टम को तोड़ने वाली फिल्म बनाने वाले लोगों को सरकार सम्मानित जरूर करती है पर सरकार को गौरक्षक याद नहीं आते।
मोदी सरकार की बुनियाद गौरक्षा और हिंदू धर्म है या फिर यह फिल्मी कलाकार?
पूरे विश्व में यह एक अकेली सरकार है जो अपनी जड़ों को सींचने के बजाय उसे सुखा रही है। सरकार अगर अपनी जड़ों को सींच नहीं सकती तो उसे सुखाने का भी अधिकार सरकार को नहीं है।
पूरे विश्व में कम्युनिस्टों और लिबरलों द्वारा मोदी सरकार को हिंदुत्ववादी बताकर बहुत विरोध किया जाता है पर यह कितनी हिंदुत्ववादी है यह तो भारत के असली हिंदू ही जानते हैं। देखते हैं सरकार कब तक गोरक्षा को मान्यता प्रदान करती है।
गौरक्षा को मान्यता मिलना बहुत जरूरी है।