आज करवाचौथ है। जैसा कि आपको मालूम आज के दिन सुहागिनें अपने पति की लम्बी उम्र के लिए व्रत रखती है। पर आपने कुछ दशकों से देखा होगा की त्यौहार कोई सा भी हो, प्रोपेगैंडा हमेशा हाथ फैलाये हमारे त्योहारों का स्वागत करने को खड़ा रहता है।
आपने बहुत सारी ऐसी बातें कम्युनिस्टों और फेमिनिस्टों के मुख से सुनी होगी जो आम तौर पर करवाचौथ को दूषित करने का प्रयास होता है। जैसे की “यह त्यौहार महिलाओं के लिए ही क्यों है”, “क्यों महिलायें ही पुरे दिन भूखी रहे” आदि आदि।
हालाँकि धीरे धीरे हिन्दू समाज अब जाग रहा है। पर लेफ्टिस्ट, वेस्टर्न, एंटी-हिन्दू, कन्वर्शन और मजहबी ताकतें, कम्युनिस्टों और फेमिनिस्टों के लिए करवाचौथ प्रोपेगैंडा फैलाने का जरिया बन गया है।
हाल ही में हुई दो घटनाओं को देखिए कि किस प्रकार करवाचौथ को टारगेट किया जा रहा है।
डाबर ने करवाचौथ के विज्ञापन में लेस्बियन कपल को पति-पत्नी के रूप में दिखाया।
हाल ही में डाबर ने एक विज्ञापन जारी किया। इस विज्ञापन में एक समलैंगिक लेस्बियन जोड़े को पति-पत्नी के रूप में दिखाया गया। हालाँकि डाबर से ऐसी उम्मीद तो कतई नहीं थी।
इस विज्ञापन को देखकर सवाल उठे और उठना भी चाहिए। आजकल कंपनी चाहे जो कोई भी हो वो हिंदू त्यौहारों को अपने ब्रांड्स के प्रमोशन का जरिया बना रहे है। वो विज्ञापन इस प्रकार के बना रहे है जो कोमल धार्मिक भावनाओं के साथ खेलते है।
हालाँकि इन ब्रांड्स को यह भी मालूम रहता है कि वे क्या बना रहे है और इससे उनके ब्रांड्स की इमेज नेगेटिव बनेगी। पर यह ब्रांड्स “बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा” वाली स्ट्रेटेजी पर काम कर रहे है।
इसलिए विरोध होते ही इनके रेवेन्यू में उछाल आ जाता है और इन्हें लगता है की तरकीब काम कर गयी।
इसलिए ऐसे विज्ञापन और बनेंगे और बनते रहेंगे। पर समझदार हमें होना ही होगा। हमें अपने परिवार को ऐसे विज्ञापनों के मंतव्यों के बारे में शिक्षित करना होगा क्योंकि इन विज्ञापनों का प्रोपेगैंडा मात्र फेमस होकर नाम और पैसे कमाना ही नहीं बल्कि परिवार तोड़ना भी है।
इसलिए बहिष्कार करना भी जरूरी है और परिवार को शिक्षित करना भी।
अनिल कपूर की बेटी रिया कपूर को करवाचौथ में विश्वास नहीं।
थोड़े दिन पहले एक खबर आयी। रिया कपूर जोकि अनिल कपूर की बेटी है उनका कहना है की उन्हें करवाचौथ के कोई भी गिफ्ट्स नहीं चाहिए। वो और उनके पति इस त्यौहार में विश्वास नहीं रखते। इसलिए वे इस दिन से संबंधित कोई भी collab और प्रमोशन नहीं करेंगी।
चलिए ठीक है। यह तो रिया कपूर की पर्सनल लाइफ एंड मैटर है। हमें क्या करना। मत रखिये आप विश्वास। आपसे हमें वैसे भी कोई उम्मीद नहीं है। हमें आपका विश्वास चाहिए भी नहीं। अपने पास रखिये अपना विश्वास।
पर नहीं। इससे हमारे समाज पर और परिवार पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। वो इसलिए की आजकल हमारे बच्चें इन्ही तथाकथित मॉडर्न और स्वतंत्र विचारों वाले लोगों और समूहों को फॉलो करते है। केवल इंस्टाग्राम,फेसबुक और ट्विटर पर ही नहीं बल्कि अपने लाइफस्टाइल और जीवन के अहम निर्णयों में भी।
ऐसी करोड़ो युवक-युवतियाँ होंगी जिनकी अपनी कोई भी स्वतंत्र विचारधारा नहीं है और वे केवल blindly ऐसे लोगों को फॉलो करते है। हो सकता है की कोई आपको भी दिख जाए या आपके इर्द-गिर्द ही हो।
परंपरा को फॉलो करने की अगर आप उन्हें नसीहत भी देंगे तो वो आपको यह रिया कपूर वाली इंस्टाग्राम स्टोरी भी दिखा सकते है और कह सकते है वे जो कर रहे है वो सही है और करवाचौथ ओल्ड ट्रेडिशन है, गलत है, इसका साइंस से कोई लेना देना नहीं। जबकि चर्च जाना उन्हें कूल लग सकता है।
इसलिए फिर से जरूरी है कि अपने परिवार को शिक्षित कीजिये।
करवाचौथ के खिलाफ अक्सर दिए जाने वाले तर्क, जोक्स या व्यंग्य।
क्यों महिलायें ही पुरे दिन भूखी रहे।
यह त्यौहार महिलाओं के लिए ही क्यों है, पुरुषों के लिए क्यों नहीं।
आज उल्लू पूजेगा।
रिचार्ज करवा लें।
इन्श्योरेंस करवा लो।
भूखी शेरनी ज़्यादा खतरनाक होती है।
कृपया मेहँदी लगवाते वक्त उंगलियों के आगे के हिस्से को छोड़ दें ताकि मोबाइल खुद से चला सकें।
इस दिन से संबंधित आपने ऐसे बहुत सारे जोक्स फॉरवर्ड किये होंगे और अपने दोस्तों और परिवार में व्यंग्य कसे होंगे। पर सवाल यह है कि यह सब आये कहाँ से?
क्या अपने ही त्योहारों का मजाक उड़ा कर हम मॉडर्न या साइंटिफिक बन जाएँगे? या हमें कूल दिख कर कुछ सामाजिक प्रतिष्ठा मिल जाएगी।
आखिर क्या मिलेगा हमें। आत्मग्लानि!
की क्या हमारे पास कोई ठीक ठाक त्यौहार भी नहीं है? वो देखिये, वो मुस्लिम ईद के दिन कितना खुश है, वो देखो क्रिस्चियन लोग क्रिसमस मनाने के लिए पूरी रातभर जाग रहे है।
अब गेंद हमारे पाले में है। इसलिए सोचना आपको और हमें है।